Dhyanchand biography in hindi: जय हिंद दोस्तों! आज के इस पोस्ट में हम जानेंगे भारतीय हॉकी टीम के महान खिलाड़ी Major dhyanchand की Biography यानी ध्यानचंद के जीवन परिचय के बारे में, मेजर ध्यानचंद जो की भारतीय हॉकी टीम के सबसे महान खिलाड़ी हैं, मेजर Dhyanchand ने भारत को ओलंपिक में तीन स्वर्ण पदक (Gold Medal) जिताने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ध्यानचंद के खेलते हुए भारत ने 1928 में एमस्टर्डम में स्वर्ण पदक जीता और फिर 1932 में लॉस एंजेलिस में खेले गए ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता साथ ही 1936 में Major Dhyanchand के कप्तानी में भारत ने तीसरी बार स्वर्ण पदक जीता। भारत ने 1928 से 1964 तक आठ में से सात ओलंपिक में फील्ड हॉकी स्पर्धा जीती।
Major Dhyanchand का जन्म और प्रारंभिक जीवन परिचय
Major ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ था [ इनके जन्म दिन को ध्यानचंद के समान में इस दिन को (राष्ट्रीय खेल दिवस ) के रूप में मनाया जाता है। ] एक राजपूत परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम सूबेदार समेश्वर दत्त सिंह एवं माँ शारदा सिंह थे ध्यान चंद के दो भाई थे 'हवलदार मूल सिंह' एवं 'रूप सिंह' जो की एक हॉकी खिलाड़ी थे।ध्यानचंद के पिताजी अंग्रेजी शासन काल में भारतीय सेना के तरफ से हॉकी खेलते थे। ध्यानचंद के पिताजी के सेना में होने के कारण उनका पोस्टिंग इस शहर से उस शहर होते रहता था, जिससे की उनके परिवार का अलग अलग रहना पड़ता था इसी कारण चंद 6 साल ही सुरुआती शिक्षा प्राप्त किए और फिर अपना पढ़ाई समाप्त कर दिए। उसके बाद उनका परिवार झांसी उतर प्रदेश में रहने लगे।
Dhyan chand जी कहते हैं कि उन्हें अपने युवा अवस्था में खेल में कोई उतना दिलचस्पी नहीं था पर उन्हें कुश्ती से बहुत लगाव था और वो कहते हैं की वो सेना में शामिल होने से पहले कभी हॉकी खेला भी था या नहीं।
ध्यान चंद का खेल कैरियर की शुरुआत
Dhyanchand जी को उनके 17वीं जन्मदिन पर उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना में ब्राह्मण रेजिमेंट में पहली बार एक सिपाही के तौर पर भर्ती हुए, उन्होंने पहली बार विशेष रूप से 1922 - 1926 के बीच, हॉकी टूर्नामेंट खेले। उसके बाद उन्हें भारतीय हॉकी टीम में शामिल कर लिया गया, और उनका पहला अंतराष्ट्रीय दौरा न्यूजलैंड का रहा जहां उन्हें 18 मैच जीते 2 मैच ड्रा रहा और केवल एक ही मैच हारे, न्यूजलैंड में उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए खुद प्रशंसा मिला। और Dhyan Chand को लांस नायक के लिए प्रमोट किया गया।
ध्यानचंद का ओलंपिक तक का सफर
मेजर ध्यान चंद और ओलंपिक: चंद को olympic में शामिल होना इतना आसान नहीं था उन्हें ओलंपिक में शामिल होने के लिए उन्हें अंतर-प्रांतीय टूर्नामेंट में सभी खिलाड़ियों को बेहतरीन प्रदर्शन देना था। उस टूर्नामेंट में Dhyanchand यूनाइटेड प्रोविंस टीम के लिए खेल रहे थे, उस टूर्नामेंट में पांच टीमों ने भाग लिया था। Dhyanchand में खेले गए अपने पहली गेम में ही बेहतरीन प्रदर्शन किया और सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। और इस तरह खेल के शुरुआत में ही यह पता चल गया की वो ओलंपिक में शामिल होने के लिए सही साबित होंगे। टूर्नामेंट के सफलता के बाद यह निर्णय लिया गया की इस टूर्नामेंट को हर दो साल पर आयोजित किया जाएगा। और इसके बाद ध्यानचंद के नाम सहित टीम अन्य खिलाड़ियों को अंत में, 24 अप्रैल को, टीम प्री ओलंपिक के लिए एम्स्टर्डम पहुंची। जहां डच, जर्मन और बेल्जियम की टीमों के खिलाफ ओलंपिक से पहले के सभी मैचों में भारतीय टीम ने बड़े अंतर से जीत हासिल किया।
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1928 एम्सटरडम ओलंपिक में ध्यानचंद
ध्यानचंद को 1928 में एम्सटरडम ओलंपिक में पहली बार भारतीय टीम के सदस्य के रूप में चुना गया यहाँ भारतीय टीम द्वारा खेले गये पांच मैचों में ध्यानचंद ने 14 गोल किये और पूरे टूर्नामेंट के टॉप स्कोरर रहे थे।
1932 लॉस एंजेलिस ओलिंपिक
लॉस एंजेलिस में भारतीय हॉकी टीम ने अपने पहले गेम में मेजबान टीम को 24-1 से मात दिया। इस मैच में ध्यानचंद के छोटे भाई रूपचंद (Roop Singh) ने 10 गोल किए थे।
इस आक्रामक टीम के खिलाफ फाइनल मुकाबलें में जापान के पास कोई जवाब नहीं था। फाइनल मैच में टीम इंडिया ने 11-0 से जीत हासिल की और लगातार दूसरी बार गोल्ड मेडल जीता।
1936 बर्लिन ओलंपिक
साल 1936 में बर्लिन में भारतीय हॉकी टीम ने लगातार तीसरी बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता। ये ध्यानचंद का अंतिम ओलंपिक गेम था, उन्होंने इसके बाद संन्यास की घोषणा कर दी थी।
इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने 30 गोल किए और हंगरी, यूएसए, जापान और फ्रांस के खिलाफ लीग मैच में एक भी गोल नहीं खाया। सेमीफाइनल और फाइनल में ध्यानचंद और रूपचंद दोनो भाइयों के शानदार प्रदर्शन की बदौलत मैच में जीत हासिल की। फाइनल मैच में लगातार दूसरे बार ओलंपिक फाइनल में ध्यानचंद ने हैट्रिक लगाई और जर्मनी के खिलाफ 8-1 से मैच जीता। इसके साथ ही ध्यानचंद ने गोल्ड मेडल के साथ हॉकी से विदाई ली।
ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता है
मेजर ध्यानचंद को हॉकी के जादूगर या जादूगर के नाम से भी जाना जाता था। इन्होंने 1928 के एम्सटर्डम ओलम्पिक में गोल करने वाले प्रमुख खिलाड़ी थे। मेजर ध्यानचंद ने हॉकी के एक मैच के दौरान 14 गोल कर दिए थे और उनके द्वारा किये गए इन गोलों की वजह से इन्हे ‘हॉकी के जादूगर’ के नाम से जाना जाता है ।
ध्यानचंद और हिटलर का मुलाकात
ध्यान चंद न सिर्फ हॉकी के खेल के महारथी थी बल्कि उनमें देशभक्ति भी कूट-कूटकर भरी हुई थी। तभी तो जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने भी ध्यान चंद को सैल्यूट करना पड़ा था। बात साल 1936 के ओलिंपिंक की है जिसमे भारतीय हॉकी टीम का सामना फाइनल में जर्मनी टीम के साथ था। मैच के शुरुआत के पहले भारतीय खेमे में डर का माहौल था क्योंकि उस मैच को देखने 40 हजार दर्शक के साथ जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर भी आने वाला था। पर इन सब से परे भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया जिसमें की ध्यानचंद ने 6 गोल किए। और भारत ओलंपिक में लगातार तीसरी बार गोल्ड मेडल जीता।
हिटलर ने ध्यानचंद को किया सैल्यूट
मैच खत्म होने के बाद हिटलर ने ध्यानचंद को अवार्ड वितरण में उनसे हाथ मिलाने के बजाय उन्हें सैल्यूट किया और इसे देख कर पूरा स्टेडियम चौक गया। इसका कारण यह था हिटलर ने ध्यानचंद के खेल से इतना प्रभावित हो गया की उसने उन्हें ऑफर दिया की तुम तुम्हे जर्मनी की ओर से खेलने के बदले में अपनी सेना में उच्च पद देने का प्रस्ताव दे डाला। और इस प्रस्ताव को Major Dhyanchand जी ने बड़े ही विनम्रता से ठुकरा दिया और कहा की भारत उनका देश है जिसे वे जान से ज्यादा चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वह आखिरी पल तक भारत के लिए ही खेलते रहेंगे। इसे ध्यानचंद के व्यक्तित्व का ही प्रभाव कहिए कि अपना प्रस्ताव ठुकराए जाने के बावजूद हिटलर उनसे नाराज नहीं हुआ। उसने उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ की उपाधि प्रदान की।
Major Dhyanchand का मृत्यु
3 दिसंबर 1979 को AIIMS दिल्ली में लीवर कैंसर से चंद की निधन हो गया। मंजूरी मिलने में कुछ शुरुआती दिक्कतों के बाद उनके गृहनगर झांसी हीरोज मैदान में उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनकी रेजिमेंट, पंजाब रेजिमेंट ने उन्हें पूर्ण सैन्य सम्मान प्रदान किया।
Major ध्यानचंद से जुड़े कुछ रोचक बातें
- ध्यानचंद का असली नाम ध्यान सिंह था, ऐसा कहा जाता है की वे रात को चाँद की रोशनी में ज्यादातर प्रैक्टिस करते थे। तो दोस्तों ने उनके नाम के पीछे चंद लगा दिया। चंद मतलब चंद्रमा।
- एक बार नीदरलैंड में एक मैच के दौरान उनकी हॉकी स्टिक (छड़ी) को तोड़कर देखा गया, यह पता करने की कही इनकी स्टिक में चुम्बक तो नही लगी। लेकिन उनको क्या पता जादू छड़ी में नही, उनके हाथों में था।
- एक बार, जब ध्यानचंद एक मैच में गोल नहीं कर पाए, तो उन्होंने गोल पोस्ट के माप के बारे में मैच रेफरी से बहस की। जब गोल पोस्ट को मापा तो ध्यान चंद सही निकले। गोल पोस्ट की चौड़ाई अंतराष्ट्रीय नियमो के हिसाब से कम निकली।
- मेजर ध्यानचंद को सबसे तेजी से गोल करने के लिये जाना जाता हैं।
- ज्ञानचंद महज 16 वर्ष की उम्र में ही एक साधारण सिपाहीके तौर पर सेना में भर्ती हो गए और वह भारतीय सेना के मेजर के पद तक गए।
- जब बर्लिन ओलंपिक में भारतीय टीम हॉकी खेल रही थी तो वहां हिटलर भी मैच देख रहा था, इसमें मेजर ध्यानचंद के खेलने के तरीके से प्रभावित होकर हिटलर ने उनको बुलाया। बातचीत में हिटलर ने कहा हमारे देश की तरफ से खेलो में तुम्हे आर्मी में मार्शल बना दूंगा। टैब मेजर ने कहा कि मेरा देश भारत हैं और में वही खुश हूं।
- मेजर ध्यानचंद ने तीन ओलंपिक खेलों में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
- क्रिकेट में ब्रेडमैन, फुटबॉल में पेले, बॉक्सिंग में मोहम्मद अली इसी तरह हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद को जाना जाता हैं।
ध्यानचंद को मिलने वाली समान
- राष्ट्र के लिए उनकी असाधारण सेवाओं के लिए, भारत सरकार ध्यानचंद के जन्मदिन (29 अगस्त) को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाती है।
- भारतीय डाक सेवा ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया गया।
- नई दिल्ली में स्थित एक स्टेडियम जिसे ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम के नाम से भी जाना जाता है ।
- उन्हें वर्ष 1956 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- 'राजीव गांधी खेल रत्न' का नाम बदलकर ( Major Dhyanchand Khel Ratna Award ) कर दिया गया।
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ध्यानचंद ने कुल कितने गोल किए हैं Dhyanchand kitne Goal kiye hain
मेजर ध्यानचंद ने अपने अन्तराष्ट्रीय हॉकी खेल में लगभग 570 गोल किए हैं।
ध्यानचंद को 'हॉकी का जादूगर' का उपाधि किसने दिया।
ध्यानचंद को The wizard of hockey, The Magician of Hockey ( हॉकी का जादूगर ) जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने कहा था।
ध्यानचंद का मृत्यु कब हुआ और कैसे हुआ ?
ध्यानचंद का मृत्यु 3 दिसंबर 1979 को लीवर कैंसर के कारण हुआ।