राष्ट्रीय झण्डा अंगीकरण दिवस: जय हिंद दोस्तों ! आज का दिन बहुत खास है हमारे देश के लिए, क्योंकि आज है राष्ट्रीय झण्डा अंगीकरण दिवस ( Rastriya Jhanda Angikaran Diwas ) मतलब की आज ही के दिन जिस तिरंगे को या जिस झंडे को हम अपने देश का आन वान और शान मानते है। उसे हमारे देश के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा को बैठक में अपनाया गया था। तब से लेकर इस दिन को राष्ट्रीय झंडा अंगीकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। तो आज के इस पोस्ट में हम जानेंगे भारतीय तिरंगे के बारे में और जानेंगे भारतीय तिरंगे का इतिहास के बारे में।
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के बारे में जानकारी
सबसे पहले भारत के राष्ट्रीय झंडा तिरंगा का डिजाइन के बारे में जानते है। राष्ट्रीय ध्वज का लम्बाई तथा चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। इसमें तीन रंगों का क्षैतिज आयताकार ( horizontal rectangular ) पटियां होती हैं। जिसमें सबसे ऊपर केसरिया रंग की पटी बीच में श्वेत (सफेद) रंग की पटी जिसमे की गहरे नीले रंग का 24 तिलयों का अशोक चक्र होता है और सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी होता होता है।
राष्ट्रीय ध्वज में मौजूद तीनों रंग और चक्र किस बात का प्रतीक है।
केसरिया रंग :- यह रंग राष्ट्रीय ध्वज/तिरंगा में सबसे ऊपर होता है जो की देश की ताकत और साहस को दर्शाता है।
श्वेत/सफेद रंग :- यह श्वेत रंग राष्ट्रीय ध्वज के मध्य (बीच) में होता है जो की धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है
हरा रंग :- यह रंग राष्ट्रीय ध्वज में सबसे नीचे होता है जो की देश के सुभ, विकास और उर्वरता का प्रतीक है।
अशोक चक्र :- यह चक्र राष्ट्रीय ध्वज के सफेद पटी में मौजूद गहरे नीले रंग का चक्र मौजूद होता है साथ हीं 24 तीलियां होती है। जिसका व्यास सफेद पटी के चौड़ाई के बराबर होता है। जो की इस बात का प्रतीक है की हमारा देश भारत निरंतर प्रगतिशील है।
भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा अपने आप में ही भारत की एकता, शांति, समृद्धि और विकास प्रतीक है।
राष्ट्रीय झंडा (तिरंगा) का डिजाइन किसने बनाया था ?
पिंगली वैंकैया ने
राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास
भारत के राष्ट्रीय ध्वज बनाने का योजना 1857 में स्वतंत्रता के पहले संग्राम के समय बना था लेकिन उस वक्त वह आंदोलन समय से पहले ही समाप्त हो गया था जिसके राष्ट्र ध्वज बनने का आइडिया बीच में ही रुक गया। और आज जिस राष्ट्रीय ध्वज यानी जिस तिरंगे को हम देखेते हैं उस तक पहुंचने में राष्ट्रीय ध्वज को बहुत से पड़ावों से गुजरना पड़ा है।
पहला ध्वज : पहले ध्वज को स्वामी विवेकानंद के शिष्य भगिनी निवेदिता द्वारा 1904 ई में बनाया गया था। इस झंडे में लाला पीले और हरे रंग के पाटियो से बनाया गया था। जिसमे सबसे ऊपर हरी पटी था जिस पर की आठ कमल थे ठीक उसके नीचे यानी की बीच में पीले रंग का पटी था जिस पर की वन्देमातरम लिखा था और सबसे नीचे लाल पति ठिंजिस पर की चांदऔर सूरज बने हुए थे। जिसे की ग्रीन पार्क कोलकत्ता में इसे पहली बार कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था
दूसरा ध्वज: दूसरा ध्वज पहले ध्वज के आधार पर था सिर्फ इसमें बदलाव यह था कि इसके सबसे ऊपर वाली पति पर एक कमल तथा 7 तारे बने थे जो की सप्तऋषियों दर्शाते थे जिसे की पेरिस में 1907 में मैडम कामा और कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था साथ ही इस ध्वज को बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
तीसरा ध्वज: तीसरा ध्वज में 5 लाल और 4 हरी पाटिया के बाद एक और सप्तऋषियों के आधार पर इस पे 7 सितारें बने थे जिसके बाएं ओर यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था। जिसे की डॉ एनी बेसेंट और लोक मान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इस ध्वज को फहराया था
चौथा ध्वज: चौथा ध्वज पिंगिल वैंक्या द्वारा बनाया गया जिसमे की दो पटियां थी एक लाल और एक हरा जो की लाल हिंदू और हरा मुस्लिम धर्म को प्रतिनिधित्व करता है। और इसे ध्वज को गांधी जी को दिखाया गया और उन्होंने कहा कि इसमें भारत के अन्य समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें सफेद पटी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए चलता हुआ चरखा लगाने का सुझाव दिया।
यह बात 1931 की है जब तिरंगे ध्वज को भारत का राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव को पारित किया गया। और उस प्रस्ताव में ही इसे राष्ट्रीय ध्वज का मान्यता मिला। पर आज जो हम जिस तिरंगे को देखते है यह वैसा नही था यह केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया था कि इस ध्वज का कोई साम्प्रदायिक महत्त्व नहीं था।
और स्वतंत्रता प्राप्ति से कुछ दिन पहले संविधान सभा ने राष्ट्रध्वज को संशोधित किया। इसमें चरखे की जगह अशोक चक्र को दी गई जो कि भारत के संविधान निर्माता डॉ॰ बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने लगवाया। और 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने वर्तमान ध्वज यानी तिरंगे को भारतीय राष्ट्रीय के रूप में अपनाया।
भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन
26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता ।ए संशोधन किया की भारत के आजादी के कई वर्षो बाद लोग अपने घरों,कार्यालय और फैक्ट्रियों आदि संस्थानों में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर बल्कि अब वो किसी भी दिन राष्ट्रीय ध्वज को गहरा सकते हैं बशर्ते की वो ध्वज की संहिता को कड़ाई से पालन करे। और तिरंगे की सम्मान में कोई कमी न आने दें।
झंडे का सम्मान कैसे करें
भारतीय कानून के अनुसार ध्वज को हमेशा गर्व और सम्मान से देखना चाहिए "भारत की झंडा संहिता-2002", ने प्रतीकों और नामों के (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950" का अतिक्रमण किया और अब वह ध्वज प्रदर्शन और उपयोग का नियंत्रण करता है। सरकारी नियमों में कहा गया है कि झंडे का स्पर्श कभी भी जमीन या पानी के साथ नहीं होना चाहिए। उस का प्रयोग मेजपोश के रूप में, या मंच पर नहीं ढका जा सकता, इससे किसी मूर्ति को ढका नहीं जा सकता न ही किसी आधारशिला पर डाला जा सकता था। सन 2005 तक इसे पोशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता था। पर 5 जुलाई 2005 , को भारत सरकार ने संहिता में संशोधन किया और ध्वज को एक पोशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग किये जाने की अनुमति दी। हालाँकि इसका प्रयोग कमर के नीचे वाले कपडे के रूप में या जांघिये के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रीय ध्वज को तकिये के रूप में या रूमाल के रूप में करने पर निषेध है। झंडे को जानबूझकर उल्टा रखा नहीं किया जा सकता, किसी में डुबाया नहीं जा सकता, या फूलों की पंखुडियों के अलावा अन्य वस्तु नहीं रखी जा सकती। किसी प्रकार का सरनामा झंडे पर अंकित नहीं किया जा सकता है।
झंडे का समापन कैसे करें ?
जब झंडा क्षतिग्रस्त या मैला हो जाए तो उसे अलग या अनादर के साथ नही रखना चाहिए। झंडे को विसर्जित या नष्ट कर देना चाहिए या जला देना चाहिए। तिरंगे को नष्ट करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप उसे गंगा में विसर्जित कर दें या उचित सम्मान के साथ दफना दें।