Chandra shekhar azad ki kahani | चंद्रशेखर आजाद कि पूरी कहानी संक्षेप में

Admin

"दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे।

आजाद ही रहे हैं, आजाद ही मरेंगे।।"

"अभी भी जिसका खून ना खौला, वह खून नहीं पानी है 

जो देश के काम ना आया, वो बेकार जवानी है "





चंद्रशेखर आजाद कि कहानी

यह बात ब्रिटिश जमाने की है जब 16 वर्षीय बालक पर मुकदमा चलाया जा रहा था। जब उससे जज ने पूछा तुम्हारा नाम क्या है है तब उसने जवाब दिया ' आज़ाद ' फिर जज ने पूछा तुम्हारे पिता का नाम क्या है तब उसने जवाब दिया ' स्वतंत्रता ' फिर जज ने झलाते हुए बालक से पूछा तुम्हारा पता क्या है तब उसने जवाब दिया 'जेल की कालकोठरी' अब जज को गुस्सा आ गया और झलाते हुए उसने उम्र का लिहाज न करते हुए उस बालक को 15 कोड़े मारने के आदेश दे दिया। हर कोड़े के मार पर बालक ' वन्देमातरम ' और 'महात्मा गांधी' की जय का नारे लगाया। आगे चलकर वही वीर बालक चन्द्रशेखर आज़ाद के नाम से विख्यात हुए। चन्द्रशेखर आज़ाद अक्सर एक शेर गुनगुनाया करते थे।


दुश्मनों की गोलियों का, हम सामना करेंगे 

  आज़ाद ही रहें हैं, आज़ाद ही मरेंगे।



  • आपको बता दें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था चंद्रशेखर आज़ाद के पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी और माता का नाम जगदानी देवी था।


  • चंद्रशेखर आज़ाद का बचपन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र भाबरा में गुजरा। इस आदिवासी परिवेश में चंद्रशेखर आज़ाद ने भिलो के साथ कुश्ती, तैराकी, धनुर्विद्या को सिखा। चंद्रशेखर आज़ाद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भावरा में ही पूरी किया। 14 वर्ष की आयु में अध्ययन के लिए वे बनारस चले गए जहां उन्होंने आगे की शिक्षा एक संस्कृत विद्यालय में की ।


  • 1919 में जालियावाला हत्याकांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था इस हत्याकांड में हज़ारों निर्दोष लोगों को अंग्रेजों ने गोलियों से छलनी करवा दिया था। इस हत्याकांड के बाद न जाने कितने ही क्रांतिकारियों का जन्म हुआ जिन्होंने भारत माता को अंग्रेजों से मुक्त कराने की प्रतिज्ञा ली उनमें से चंद्रशेखर आज़ाद भी एक थे।


  • जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा किए तो पूरे भारतवर्ष क्रांति का लहर दौड़ गया। गांधी जी के दिखाए गएमार्ग पर देशवासियों ने विदेशी वस्तुओं, विदेशी शिक्षण संस्थानों, विदेशी संस्थाओं का विरोध किया जाने लगा। इस आन्दोलन में 16 वर्षीय चंद्रशेखर आज़ाद को गिरफ्तार कर लिया गया। जब उनसे पेशी के दौरान कोर्ट ने उनसे सवाल पूछे तो चंद्रशेखर के द्वारा दिए गए जवाब इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया। कोर्ट में पेसी के दौरान उन्होंने अपना नाम आज़ाद पिता का नाम पिता का नाम स्वतंत्रता बताया और घर पूछने पर कालकोठरी बताया था।


  • असहयोग आन्दोलन को वापस लेने पर चंद्रशेखर आज़ाद समेत कई नौजवानों को बड़ी निराशा हुई। अंग्रेजो के खिलाफ आजादी कि लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए पंडित राम प्रसाद बिस्मिल शचींद्रनाथ सान्याल योगेश चन्द्र चटर्जी ने 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ' की स्थापना की। चंद्रशेखर आज़ाद का भी रुझान क्रांतिकारी विचारधारा की ओर हुआ जिसके उपरांत वे भी ' आज़ाद हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ' जुड़ गए। 


  • आजाद हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का लक्ष्य था क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए धन इकठ्ठा करना और भारतीयों पर अत्याचार करने वाले ब्रिटिश का दमन। इसी क्रम में 1925 को काकोरी कांड को अंजाम देते हुए सरकारी खजाने को लूट लिया गया।


  • अंग्रेजो ने क्रांतिकारियों की धरपकड़ शुरू कर दी, जल्द ही कई क्रांतिकारियों समेत असफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल पकड़ लिए गए। असफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल और रोशन सिंह को फांसी दे दी गई। चंद्रशेखर आज़ाद यहां से बच निकलने में कामयाब हो गए एवं कुछ दिन झांसी में बिताने के बाद ' हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मुख्यालय में पहुंचे। वहां पर उनकी मुलाकात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे अन्य क्रान्तिकारियों से उनका मुलाकात हुआ।


  • इसके बाद चंद्रशेखर आज़ाद ने दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में ' हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ' का पुनर्गठन करते हुए ' हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ' का स्थापना की इस संगठन के उद्देश्यों में समाजवाद के उद्देश्यों को भी शामिल किया। 


  • इस दौरान साइमन कमिशन का वाहिष्कर करते हुए अंग्रेजों के लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। संगठन के लोगों ने लाला लाजपत राय की का बदला लेने का कसम लिया और लाहौर पुलिस अधीक्षक को घेरे में ले लिया गया लेकिन सही पहचान न होने के कारण पुलिस अधीक्षक एस्कॉर्ड के जगह सौंडर्स की हत्या कर दी गई। राजगुरु ने। जहां पहले गोली मारी वहीं पर भगत सिंह ने भी कई गोलियां मारकर सौंडर्स की हत्या कर दी। सौंडर्स के अंगरक्षक को चंद्रशेखर ने मर डाला।


  • चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह अंग्रेजों के वांक्षित सूची में शीर्ष पर शामिल हो गए लेकिन इसके। वाबजूद सारे लोग लाहौर से बच निकलने में कामयाब हो गए। आगे चलकर चंद्रशेखर आजाद के न चाहते हुए भी भगत सिंह ने लाहौर के असेम्बली में बम फेंकने की योजना बनाई । असेंबली। मै बम फेकने के उपरांत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को गिरफ्तार कर लिया गया। आजाद समेत 29 अन्य लोगों लाहौर साजिश के तहत मुकदमा चलाया गया। लेकिन चंद्रशेखर आजाद यहां से बच निकले। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई।


  • चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को जेल से छुड़ाने की योजना भी बनाई लेकिन भगवती चरण वोहरा के एक बम परीक्षण के दौरान शहादत हो जाने के कारण यह योजना कारगर नहीं हो सका। फांसी रुकवाने के लिए चंद्रशेखर आजाद दुर्गा भाभी को भी गांधी जी के पास भेजा लेकिन गांधी जी का कोई प्रतिक्रिया नहीं आया। आजाद ने गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ जवाहर लाल नेहरू से संपर्क साधा जिससे की उन तीनो की फांसी रुकवाया जा सके।


  • आजाद, जवाहर लाल नेहरू से मिलने अलाहाबाद भी गए लेकिन नेहरू ने आजाद को मिलने से इंकार कर दिया। इसके उपरांत चंद्रशेखर आजाद तुरंत अल्फ्रेड पार्क चले आए। अल्फ्रेड पार्क में वे अपने मित्र सुखदेव के साथ मंत्रणा कर रहे थे तभी किसी ने मुखबिर कर चंद्रशेखर आजाद के बारे अंग्रेजों को सूचना दे दी। अंग्रेजों ने उन्हें चारो ओर से घेर लिया अपने जान की परवाह न करते हुए सुखदेव को वहां से बच निकालने में मदद किया एवं खुद अंग्रेजों से भिड़ गए। काफी घायल हो जाने के बाद भी उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेते रहे। एवं जब आखिरी गोली बची तो उन्होंने खुद को गोली मर ली।


  • आपको बता दे कई प्रसंगों पर चंद्रशेखर आजाद ने कहा था कि "जब तक उनकी पिस्तौल उनके हाथ में है तब तक अंग्रेज़ उनको हाथ नहीं लगा सकते" और हुआ भी यही ब्रिटिश कभी जीते जी आजाद को पकड़ नहीं पाए। आज भी वह पिस्तौल इलाहबाद के म्यूजियम में रखा हुआ है। इस प्रकार एक महान क्रांतिकारी के रूप में चंद्रशेखर आजाद अमर हो गए एवं उनके कथन आने वाले पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का श्रोत बन गए। 


अभी भी जिसका खून ना खौला, वह खून नहीं पानी है जो देश के काम ना आया, वो बेकार जवानी है।

To Top